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झुकु कैसे - एक कविता।‌How can I Bow - A Poem

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  झुकु कैसे  मैं चौंक गया यह पड़के  की,  कुछ पानाहै तो झुकना सीखो,  क्या मतलब है इसका  कुछ बड़ा पानेके लिए  आदर्श, उसुल सब भुला दूं! यह तो हो गया छोटा बात  छोटा सोच से मुलाकात,  अगर सब कोई ऐसा सोचता  तो क्या आज देश आजाद होता! तो क्या गांधीजी, नेताजी  चंद्रशेखर आजाद.......  सब बेवकूफ था?  जो जान का परवाह किए बिना  ब्रिटिश से लड़ पड़ा।  क्या जरूरत था उनका  देशवासी के भलाई के लिए अपना जान देना। वह रह सकता था चैनसे  जिंदगी उनका होता आराम का,  पर बह अलग सोचा  आदर्श, उसुल उनका था ऊंचा,   इसलिए वह झुक कर खुश रहने से ज्यादा  शर उठा कर मरना चाहा! पड़िए अगला कविता  पड़िए पिछला कविता (खुदको सुधारो)

खुदको सुधारो - एक कविता। Rectify Yourself - A Poem

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  खुदको सुधारो  चाहता हूं करने कितना कुछ  सोचता हूं इतना शिखु, इतना शिखु  की हर परेशानी खुद निपट सकु।  पर काम करने का समय, हो नही पाता  सब कुछ करनेके लिए  मेरा समय कम परजाता। सोचता हूं कुछ कुछ छोड़दु  पर मन नहीं मानता,  कुछ दिलका करीब है  तो कुछ है इरादा।  इसलिए अभी खुद पर फोकस किया हूं  बेहतर बनना है मुझे,  बादमे सब करूंगा  जो करना है मुझे! एक दिन जरूर आएगा  जब सफलता कदम चूमेगा मेरा,  अभी मुझे सिर्फ बेहतर बनना है  ताकि कर सकूं में वह सब  जो मुझे करना है। पढ़िए अगला कविता (झुकु कैसे) पढ़िए पिछला कविता (उजाला)

उजाला - एक कविता। Brightness - A Poem

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  उजाला   मेहनत करके क्या मिला?  अच्छा बन के क्या मिला?  धोखा! गरीबी! लाचारीयत!  अंधकारसे घिरेहो तुम  आज बेबस हो तुम।  सोचो क्या ऐसे जिल्लत भड़ा जिंदगी चाहते थे?  क्या इसके लिए मेहनत करते थे? पूछो आज खुद से,  क्या हो तुम?  क्यों हो तुम?  क्या करना चाहते थे,  और क्या बनके रह गए?   ऐसा मत सोचो  की बहुत देर हो गया,  कुछ नहीं और कर पाओगे, सब कुछ लुट गया!  अभी भी बहुत कुछ कर सकोगे,  बहुत आगे बढ़ सकोगे,  बस हिम्मत नहीं हारना है  मेहनत करते जाना है!   एक दिन जरुर पाओगे अपने आप को,  वह मुकाम पर  बस आज सहले और मेहनत कर। पढ़िए अगला कविता (खुदको सुधारो) पढ़िए पिछला कविता (खामोशी)

खामोशी - एक कविता। New Year - A Poem

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  खामोशी   कुछ बोलने से ज्यादा  ना बोलने में,  ज्यादा ताकत लगता है,  दूसरों के बाद सुनके चुप रहने के लिए  आत्म नियंत्रण लगता है।  यह सुनने में जितना आसान लगता है  उतना आसान है नहीं,  कोशिश करके देख लो, कर पाओगे नहीं।  यह तो है समझदारी के बात  पर आज समझदार आदमी मिलता कहां है? हर कोई भीड़ में खड़ा  अकेला चलने का साहस किसमें है? कोई ताकत से मचाता है शोर  तो कोई दिमाग से,  और कमजोर रहता है चुप,  पर डर से!  खामोश रहने का ताकत और दिमाग  नहीं किसी के पास,  तो कैसे लोग बढ़ेगा आगे  रचेगा नया इतिहास? अभी भी वक्त है, देर नहीं हुआ  खुद पर इतना नियंत्रण लाअ  कि वक्त कितना भी बुड़ा आए  तुम खामोश रह सको!  फिर देखना सब बदलेगा  बुरा वक्त बदल जाएगा। पड़िए अगला कविता (उजाला) पढ़िए पिछला कविता (नया साल)

नया साल - एक कविता। New Year - A Poem

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  नया साल   चारों ओर कुछ बदलाव है  मानो जैसा कुछ गजबका बात है,  बैंड-बाजा, शोर-शराबा  पटाका भी फोड़ डाला,  खुशीका एक चादर फैला है  क्योंकि, नया साल आया है! पाल है यह खुशी से भरा  मौज-मस्ती चारों ओर चल रहा,  जो शामिल है वह तो खुश हैं,  पर जो शामिल नहीं  बह ज्यादा खुश है। पर चौकाने वाला बात ए है  जो नहीं समझता एसब क्यों  वह भी खुश है! हां भाई, सब खुश हैं  इस नए साल में कुछ तो बात है! हर दिल में है चाह, है दिल में है विश्वास,  अब आएगा बह पल  मिलेगा वह खुशी,  जो था मेरा ख्वाब, अब बदलेगा मेरा जिंदगी। पढ़िए अगला कविता (खामोशी) पढ़िए पिछला कविता (अच्छे दिन)

अच्छे दिन - एक कविता। Good Days - A Poem

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  अच्छे दिन   नाम ही सिर्फ सुना है  पर देखा नहीं, होताहै कैसे यह अच्छे दिन  कभी महसूस किया नहीं!  बुरा वक्त मुझे घिरे है  चाहत सिर्फ इसे छुटकारा पाने का है,  रोश्नीका कोई किरण नहीं  अच्छे दिनका अब मुझे कोई चाहत नहीं! जिंदगी है गम से भरा  इधर गम उधर गम  चारों ओरसे इससे ही घिरा,  ख्वाब है बस इससे छुटकारा मिल जाए  अच्छे दिन कभी आए या ना आए! सोचताहूं मैं  बुरा वक्तसे ही दोस्ती करलु, कमसे कम सुकून तो रहेगा  जो चाहताथा वही मिला  कुछतो ख्वाब पूरा होगा! अच्छे दिनका इंतजार करना क्यों  जो नहीं मिलेगा,  उसका चाहत रखना क्यों  जो है उसे ही मैं अब खुश रहूंगा  अच्छे दिनका इंतजार मैं और नहीं करूंगा। पढ़िए अगला कविता (नया साल) पढ़िए पिछला कविता (मेहनत)

मेहनत - एक कविता। Work - A Poem

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  मेहनत   आगे बढ़ने का चाहत है  कुछ बड़ा करने का हौसला है, मंजिल बहुत ऊंचा है  तो मेहनत जादा होनेवाला है।  हर कामयाबी के पीछे  बहुत मेहनत होता है,  कामयाब इंसानका जीवन देखो  पाता चलेगा तुझे  वह कितना कष्ट किया है!  कितना कठिन मेहनत किया है  तब मिला है उसे कामयाबी  जीवन में आया है खुशी।  सोचो कभी  वह क्यों कामयाब और तुम नहीं,  उत्तर सिर्फ एक है  वह मेहनत किया और तुम नहीं! अब बारी है तुम्हारे  मिलेगा खुशी बहुत सारे, पर बताना पड़ेगा तुम्हें  तुम इसके लायक हो,  इसलिए  आजसे ही मेहनत करना शुरू करो। पढ़िए अगला कविता (अच्छे दिन) पढ़िए पिछला कविता (पैसा)

पैसा - एक कविता। Money - A Poem

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 पैसा  पैसा पैसा लता है  बात तो है यह सच्चा,  पर पैसा आएगा कैसे  अगर नहीं रहे पैसा! भागो मत पैसे के पीछे  इससे कोई फायदा ना होगा,  अपनालो अच्छे आदत  पैसा तुम्हारा पीछे आएगा! हर दिन दो कुछ वक्त  अपने आप को।  हर पल पूछो अपने आप से  क्या तुम आगे से बेहतर हो? अगर नहीं हो  तो बेहतर बनो,  अगर हो  तो और बेहतर बनने का कोशिश करो!   अच्छे आदत से तुम  इतना बेहतर बनोगे एक दिन,  तुम्हारा हर कदम  बनाएगा इतिहास,  तब पैसेका होगा बारिश  पूरा होगा तेरा हर ख्वाहिश! पढ़िए अगला कविता (मेहनत) पढ़िए पिछला कविता (सहनशीलता)

सहनशीलता - एक कविता। Endurance - A Poem

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सहनशीलता   जीवन है अंधेरे से भड़ा  बुरा नहीं अच्छे कर्म के लिए,  रोश्नीके तलाश जारी रख  पर सच्चा राह ना छोड़। अच्छे इंसानके तकलीफ ज्यादा, सच्चे राह में घाव ज्यादा,  पर बुरा वक्त जरूर डालता है  उसके बाद जो आता है  वह हर दर्द भुला देता है! बुरा वक्त आता है कुछ सीखानेके लिए  उससे सीख, डर मत  जब वह जाएगा तब तुम समझोगे  तुम बहुतसे आगे निकल चुकेहो,  क्योंकि तुम बुरा वक्त झेलेहो! इसलिए दर्द से सिख, समझ  क्यों आया, क्या होगा, कैसे निकाले  पर डर मत, रुक मत!  सह और काम करते जा  अच्छे दिनका सूरज जरूर निकलेगा।   और जब वह निकलेगा  तुम हर वह चीज पाओगे  जो तुम्हारे ख्वाब था।  पढ़िए अगला कविता (पैसा) पढ़िए पिछला कविता (डर)

डर - एक कविता। Fear - A Poem

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  डर गलती तो होता है इसके मारे  गलती से सीखो,  डर आता है सबके जिंदगी में,  इसे झेलना सीखो! रास्ता हो अगर खुशी से भड़ा  चलनेका मजा नहीं आता, जिंदगीमें अगर डर ना हो  तो आगे बड़ा नहीं जा सकता। मगर डर के मारे कुछ करना  और डर को समझकर कुछ करना  इन दोनों में है अंतर;  डर के मारे कुछ करोगे तो  पछताओगे जीवन भर,  और डर को समझकर कुछ करोगे तो  बन जाओगे एक दिन सिकंदर!   तो समझो डर को, डरो मत  समझकर काम करो  नादान बनो मत।  हौसला और हिम्मत साथ रखो  खुद पर भरोसा करो,  आज जितना खराब हो  काल अच्छा होगा,  जो सोचेहो, वह जरूर मिलेगा। पढ़िए अगला कविता (सहनशीलता) पढ़िए पिछला कविता (तकलीफ)

तकलीफ - एक कविता। Pain - A Poem

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  तकलीफ   जितना सहोगे उतना मिलेगा  कुछभी बेकार नहीं जाता,   आज तकलीफ है तो कल खुशी मिलेगा  पर आज तुम्हें सहना पड़ेगा! तकलीफ लेकर आता है खुशी का पैगाम  पर हम सिर्फ देखते हैं गम, गम ही नहीं सहोगे तो  खुशी कैसे मिलेगा,  खुशी गमके बगैर नहीं रहता।   अगली बार अगर गम आए  तो समझ लेना कुछ अच्छा होने वाला है, गम लेकर आया है वह पैगाम  होने वाला है अच्छा इसका अंजाम।   कहावत है, "जो पत्थर  छेनी-हातुरी के दर्द नहीं सह सकता  वह कभी मूरत नहीं बन सकता"। हमारा जिंदगी भी ऐसा है  हमें अगर तकलीफसे डर लगे  तो हम नहीं बढ़ सकते आगे। इसलिए हिम्मत से तकलीफ झेलो,  इससे प्यार करो, याद रखो आज जितना तकलीफ झेलोंगे  कल उतना ज्यादा खुशी पाओगे। पढ़िए अगला कविता (डर) पढ़िए पिछला कविता (भगवान)

भगवान - एक कविता। God - A Poem

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  भगवान   सब कहते हैं भगवान हमारा बाप है,  वही है जो हमें बनाया है,  तो मानो उसे दिल से  मानते हो क्यों डर से! कभी सुना है, कोई कहते हैं अपने बाप से, ए करदो मैं वह दूंगा? यहां ही खत्म नहीं, बहुत है-  भगवान गुस्सा हो गया तो  विनाश कर देगा!  क्या कोई षाप ऐसा करेगा?  भगवानका प्रकोप लगा है  पूजा करना पड़ेगा!  पूजा करके बापको संतुष्ट करना पड़ता है!  और है! और है! अब सुनो मेरे बात,  अगर वह सब सच है  तो वह भगवान हमें बनाया नहीं है,  क्योंकि बनाने वाला का जिम्मेदारी होता है  अपने सृष्टि को अच्छेसे रखनेका।  भगवान कभी गैर जिम्मेदार नहीं हो सकता! इसलिए भगवान से डरो मत  वह है हमारा रखवाला,  यह तो है कुछ भ्रष्टाचार व्यापारी  जो भगवानका नामका डर फैलाया। पढ़िए अगला कविता (तकलीफ) पढ़िए पिछला कविता (दिमाग का खेल)

दिमाग का खेल - एक कविता। Mind Game - A Poem

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  दिमाग का खेल   खेल है यह पैसे का  नहीं है ए सबका बसका,  पर सबको है ए खेलना,  पर कुछ दिन बाद समझ आता है  नहीं है यह सबका बसका! यह तो है गजबका खेल  शक्तिका कोई जरूरत नहीं,  दिलका तो सुनोही मत  इन दोनों से इसका कोई वास्ता नहीं। ए खेलना होगा दिमागसे, दिमाग नहीं तो छोड़दो,  नहीं है ए तेरा बसके।  अच्छासे खेलोगे तो मिलेगा पैसा  बन जाओगे तुम बादशा,  पैसेका कोई कमी नहीं रहेगा,  हर चाहत तेरा पूरा होगा  पर याद रखो हर बार जीत नहीं होगा! दिमागसे खेलना, दिलसे नहीं  दिलसे इसका कोई वास्ता नहीं, समझ लिया इसे तो तुम तैयार हो  मैदान में अब उतर सकते हो। पढ़िए अगला कविता (भगवान) पढ़िए पिछला कविता (नियत)

नियत - एक कविता। Brain - A Poem

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  नियत सब रहता है एक जगह में,  दिन-रात भी एक ही है,  फिर क्यों कोई अच्छा  और कोई बुड़ा राह लेताहै? सब अगर है खुदाके बनाए,  तो एक जैसे सब क्यों नहीं है?  कुछ को सब शहराता है,  और कुछ को क्यों कोसता है? एक घर में पले जब दो,  तो एक अच्छा और दूसरा क्यों बुरा होता है?  एक ही शिक्षा अगर मिले दोनों को, तो अलग काम क्यों करता है? उत्तर सरल है, सिर्फ सोचना पड़ेगा  धरतीके दो पेड़ क्यों आम और अखरोट होता!,  पेड़ का बीज और इंसान का नियत  एक से दूसरे को अलग बनाता! पेर का मजबूरी है  बह बीज नहीं बदल सकता  पर तुम तो इंसान हो  आबतो बदलो अपने नियत को। पढ़िए अगला कविता (दिमाग का खेल) पढ़िए पिछला कविता (दिमाग)

दिमाग - एक कविता। Brain - A Poem

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  दिमाग   कहते हैं सब कोई दिमाग का कोई मुकाबला नहीं, जब मानने का बाड़ी आया ह सीधा सच भूल गया।  इसलिए कुछ खुश होते हैं  सब नहीं,  ज्यादातर इस बात को समझा ही नहीं। शरीर सीमित है  यह स्थान-काल-पात्र में सीमित है,   पर दिमाग है बादशाह  कोई उसे रोक नहीं सकता।  इसका महत्व को समझो  और शरीर कम दिमाग ज्यादा लगाओ। अगर अच्छे से इस्तेमाल किया  तो मिलेगा तुम्हें वह सब जो तुम्हें चाहिए,  इसलिए शरीर के साथ-साथ  दिमागको भी समय दो, मजबूत बनाअ।   यह संसार चलाता है दिमाग  परखो अच्छा तराह से, जो इस्तेमाल किया दिमाग  वह आगे बड़ा,  बाकी सब रह गया पहले जैसे। पढ़िए अगला कविता (नियत) पढ़िए पिछला कविता (वचपन)

बचपन - एक कविता। Childhood - A Poem

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बचपन   कभी-कभी सोचता हूं मैं  अभी अच्छा हूं,  या बचपन में अच्छा था? बचपन में मांग छोटा था  पर उसे हासिल नहीं कर सकता,  अब मांग बड़ा है  एभी औकात से बाहर है। पर बचपन में खुशी था जिंदगी  जो आज नहीं है।   बचपन में दिल टूटने का कोई  अवसर नहीं था,  सिर्फ अच्छा और बुरा था,  पर आज हर पल दिल टूटता है  चारों ओर सिर्फ हे बुराई।  बचपन में कुछ करता था दिल से  आज करता हूं मजबूरी में, असली खुशी कब खोगया  बचपनमें जो हमेशा रहता था।   जाना है मुझे फिरसे बचपन में  नहीं रहना है आज में,  बह पल लौटादो मुझे  जब मैं रहता था खुश, अपने तराह  नहीं रहना चाहता हूं मैं होके बड़ा।  पढ़िए अगला कविता (दिमाग) पढ़िए पिछला कविता (मतदान)

मतदान - एक कविता। Vote - A Poem

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मतदान   किस लिए यह सब, किस लिए!  एक से डेढ़ घंटा लाइन पर रहके  करते हो मतदान!  पता तो है,  जो आते हैं मांगने वोट  वह सब नहीं है इंसान ! तो किस लिए, क्यों जाते हो?  जानवरों को क्षमता देने का भूल  क्यों करते हो?  वह सब चाहते हैं लूटने  तुम्हें, तुम्हारा देश को, मत वोट दो इस जानवरों को! पहले पूछो, क्यों?  इतना दिन क्या किया?  जीत के क्या करोगे? कितना रुपया खर्च किया, और कितना लूटोगे? लो हिसाब अच्छे से, उसके बाद जो मतदान करने!   मत चुनो ऐसे नेता  जिनका राजनीति के अलावा कोई काम नहीं,  और एक बार जिसे चुनेहो  दोबारा उसे चुनना नहीं।  पढ़िए अगला कविता (वचपन) पढ़िए पिछला कविता (नया शुरुआत)

नया शुरुआत - एक कविता। New Beginning - A Poem

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 नया शुरुआत   तय कियाहूं, करूंगा नया शुरुआत  नया जगह, नया लोग  नया सुबह और रात, नया तरीका से पुराना जैसा  रहनेका - एक नयाशुरुआत। ना होगा वहां कोई अपने  जिससे याद आएगा पुराना बात, ना रहेगा कोई नफरत मन में  जो रहता है हर वक्त मेरे साथ।   ना रहना इस जगह में मुझे  जहां रहता है बुड़ा लोग,  काम ना करके जिसका काम होता है  दूसरोंको अच्छा रख। तय किया हूं अब जाऊंगा दूर  नया एक जगह,  जहां मिलेगा लोग नए  पर, दिल का रिश्ता किसी से नहीं,  रहूंगा अपना मर्जी से  कोई पुराना याद नहीं। पड़िए अगला कविता (मतदान) पड़िए पिछला कविता (परिणाम)

परिणाम - एक कविता। Result - A Poem

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  परिणाम   कर लिया बहुत कुकर्म  सहेलियां, सबको जितना सहना था,  अब होगा फैसला  तैयार हो जाओ भुगतने परिणाम।   लूट तूने बहुत  भगवान को भी नहीं छोड़ा,  पाप का घर तेरा भर गया है  आ गया है समय परिणाम भुगतने का।   भूल गयाथा तू इतिहास को  हर काम का कीमत चुकाना पड़ता है, अब क्या करोगे जान के  यह तो अब तेरा साथ होना है। समयका चक्का ऐसा ही होता है  शक्तिशाली शक्तिहीन हो जाता है,  और, लाचार महाबलशाली,  इसलिए याद रखो इस बात को  शक्तिको अच्छे काम में लगाना,  और बुड़ा काम से दूर रहना,  वरना समय कभी रुकता नहीं  परिणाम जरूर होगा भुगतना। पड़िए अगला कविता (नया शुरुआत) पड़िए पिछला कविता (खामोशी)

खामोशी - एक कविता। Silence - A Poem

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  खामोशी   क्या सोच सोचाथा मैं ऐसे होगा  कुछ ना करके दिन कटेगा?  रह पाऊंगा घर में मतदानके समय में! चारों ओर शोर  पर दिल में नहीं,  हर कोई कर रहा है काम  पर मैं नहीं। इच्छा तो है पर चाहत नहीं था  क्योंकि गलती से भरा है मतदान प्रक्रिया, ना सरकार, ना कमिशन  कोई नहीं चाहता  निर्भय होकर मतदान करें हर मतदाता। मतदान से अब मेरा उठ गया है भरोसा  अभी कुछभी नहीं है पहले जैसा, ना नेता, ना नीति  भयानक दलदल बन गया है ए राजनीति।  इसलिए ना चाहते भी में खुशहु  ए खामोशी तुझे में सलाम करता हूं। पढ़िए अगला कविता (परिणाम) पढ़िए पिछला कविता (नींद)