अकेला चल - एक कविता। Walk Alone - A Poem
अकेला चल आए हो अकेले जाना भी पड़ेगा अकेले, दूसरे रहेंगे बस कुछ पल पर इतिहास अगर लिखना चाहते हो तो आज से अकेला चल! ए कलयुग है यारों यहां कोई किसी का नहीं है, दोस्त तो छोड़ो जब बुरा वक्त आता है तो, पिता-माता भी साथ छोड़ देता है! इसलिए गलतफैमी मत पालो साथ नहीं अकेला चलो, धोखा खाने का कोई डर नहीं रहेगा गिरोगे तो खुद के लिए, और अगर कर जाओ तो इतिहास रचोगे। तो ठान लो आज से दूसरों से ना रखोगे कोई वेस्ता, हो सके तो मदद कर देना पर अकेले ही चलते रहना। गिरोगे, उठोगे पर चलोगे जरूर सब एक दिन तुम्हें कहेगा हुजूर। पड़िए अगला कविता (बदलता वक्त) पड़िए पिछला कविता (धोखा)