हासिल सोचता हूं मैं हर रोज जिंदगी क्या ऐसे ही गुजर जाएगा? क्या मुझे नहीं मिलेगा मेरा मंजिल? अब तक में क्या किया हासिल? भविष्य के लिए मैं अतीत खोया, वर्तमान के बारेमे मैंने कभी नहीं सोचा, सिर्फ पड़ाह और काम किया तो यह कैसे हो सकता है मेरा मंजिल मुझे ना मिले। इतिहास कहता है, "काम करते जाओ, फल जरुर मिलेगा", तो मेरे बारेमे इतिहास कैसे बदल जाएगा! शायद मेरा चल रहा है इतिहास जो बहुत कठिन है, होना भी चाहिए, क्योंकि, सपना मेरा बहुत ऊंचा है! देखाहूं मैं वह सपना, छोटेसे उम्र से रहेगा मेरा अपना घर, रहेगा बहुत सारा पैसा, रहेगा ना कोई फिक्र, रहूंगा मैं खुशी से, अभी सिर्फ काम करना है लगा कर दिल जब तक ना मेरा मंजिल हो जाए हासिल! पड़िए में अगला कविता पढ़िए पिछला कविता (शरीर)