खामोशी - एक कविता। New Year - A Poem
खामोशी
कुछ बोलने से ज्यादा
ना बोलने में,
ज्यादा ताकत लगता है,
दूसरों के बाद सुनके चुप रहने के लिए
आत्म नियंत्रण लगता है।
यह सुनने में जितना आसान लगता है
उतना आसान है नहीं,
कोशिश करके देख लो, कर पाओगे नहीं।
यह तो है समझदारी के बात
पर आज समझदार आदमी मिलता कहां है?
हर कोई भीड़ में खड़ा
अकेला चलने का साहस किसमें है?
कोई ताकत से मचाता है शोर
तो कोई दिमाग से,
और कमजोर रहता है चुप,
पर डर से!
खामोश रहने का ताकत और दिमाग
नहीं किसी के पास,
तो कैसे लोग बढ़ेगा आगे
रचेगा नया इतिहास?
अभी भी वक्त है, देर नहीं हुआ
खुद पर इतना नियंत्रण लाअ
कि वक्त कितना भी बुड़ा आए
तुम खामोश रह सको!
फिर देखना सब बदलेगा
बुरा वक्त बदल जाएगा।
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