धोखा - एक कविता। Deception - A Poem
धोखा
चारों ओर इंसान है
पर उन्हें,
इंसानियत से कोई वास्ता नहीं।
लूटमारी, धोखादारि - उनका रोजका काम है
ऐसे ही गुजरता है उनका जिंदगी!
किताबों में जो पड़ा था
ज्ञान का रोश्नी जिसे मिलता है,
वह होता है दिल से महान,
सोच से ऊंचा,
गलत सोच, गलत काम
उसका अगल-बगलभी आ नहीं सकता।
पर किताबों का बातें
किताबों में ही अच्छा लगता है,
असली दुनिया से उसका कोई नाता नहीं,
किताब पढ़के अगर तुम सोचो
यह दुनिया में खुश रहोगे,
तो बर्बाद हो जाएगा तुम्हारे जिंदगी।
असली दुनिया बहुत जालिम है
यहां अच्छोका कोई मोल नहीं,
अच्छेपनका बहुत इज्जत है यहां
धोखा देनाही है जिनका जिंदगी।


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