सब अपराधी - एक कविता। All Culprits- A Poem

 सब अपराधी 


सब अपराधी  - एक कविता। All Culprits- A Poem

एक नहीं सब मिलकर किया 

अपराध नहीं घोर पाप किया,

 ईश्वर को बेआव्रु किया

 इंसानियत का धैर्य तोड़ दिया !


एक खुशहाल जिंदगी तबाह किया 

एक सुंदर सपना तोड़ दिया

 एक विकसित परिवार नष्ट किया 

पाप नहीं घोर पाप किया!


पाप करने वाले और बचाने वाली

 सब है अपराधी, सब है अपराधी!

कोई एक का नहीं अब चाहिए हमें

 सबका फैंसी, सबका फैंसी!


कर लिए वह जितना करना था 

अब हमें और सहना नहीं,

 उन सबका मौत अब हमें चाहिए

 रोक ना सकेंगे अब हमें कोई!


मिटाने के लिए अब हम है तैयार

 रुकेंगे मिटाकर ही,

छोड़ेंगे ना अब हाम किसीको 

सब है अपराधी, सब है अपराधी।


पढ़िए अगला कविता (इंसाफ)
पढ़िए पिछला कविता

सब अपराधी  - एक कविता। All Culprits- A Poem


Comments

Popular posts from this blog

ওয়াল ম্যাগাজিন - একটি কবিতা। Wall Magazine - A Poem

नया शुरुआत - एक कविता। New Beginning - A Poem

ফেয়ারওয়েল কবিতা। Farewell - A Poem

Social Service - A Poem

বিদ্যাসাগর - একটি কবিতা। Vidyasagar - A Poem

Greed - A Short Story

Something Special - A Poem